जानिए कि हीराकुंड बांध का इतिहास क्या है और इसे कब बनाया गया?
हीराकुंड बांध ओडिशा के संबलपुर क्षेत्र में महान नदी पर स्थित दुनिया का सबसे लंबा बांध है।
इस बांध की लंबाई 25.8 किमी० है जिस कारण से यह दुनिया का सबसे लंबा मिट्टी का बांध है।
हीराकुंड बांध का इतिहास
हीराकुंड बांध की आधारशिला 15 मार्च 1946 को ओडिशा के
गवर्नर सर हॉथोर्न लुईस ने
रखी थी।
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 12 अप्रैल 1948 को कंक्रीट का टुकड़ा रखा था और ये बांध 1956 में बना था।
1952 में, परियोजना की निगरानी के लिए सरकार ने मजूमदार समिति नियुक्त की जिसके अंतर्गत समिति ने परियोजना के लिए ₹ 92.80 करोड़ की लागत की परिकल्पना की।
इस बांध से 1954-55 तक कुल 1,347,000 एकड़ (545,000 हेक्टेयर) भूमि सिंचित की जाएगी और 48,000 किलोवाट बिजली पैदा की जाएगी।
13 जनवरी 1957 को प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के द्वारा इसका उद्घाटन किया गया और बिजली उत्पादन कृषि सिंचाई के साथ
1956 में शुरू हुआ।
यह बांध एशिया का सबसे लंबा बंधा है, जिसका जलाशय 640 किलोमीटर की तटरेखा पर है।
जो इसे एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम झील बनता है, ये झील देश भर से पर्यटकों को आकर्षित करती है। बांध को देखने के लिए हजारों पर्यटक आते हैं।
इस बांध पर दो अवलोकन टावर भी बनाएं गए हैं, जिन्हें गाँधी मीनार और नेहरू मीनार के नाम से जाना जाता है।
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