विश्व जूनियर वेटलिफ्टिंग चैंपियन हर्षदा गरुड़ ने 18 साल की उम्र में वो कर दिखाया है जिसके बारे में कभी किसी ने सोचा भी नहीं होगा. उन्होंने 45 किलोग्राम भार वर्ग में कुल 152 किलोग्राम का वजन उठाते हुए ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया है।
उनका यहां तक का सफर आसान नहीं रहा. इसकी शुरुआत पुणे के वडगांव नामक एक गांव से शुरू हुआ। हर्षदा के पिता शरद गरुड़ गांव में पंप ऑपरेटर थे। भारोत्तोलक बनना उनका सपना था। उनके पिता भी भारोत्तोलक थे और महाराष्ट्र के लिए खेले, लेकिन घर के हालात ऐसे नहीं थे कि वह भारोत्तोलन में ऊंचाइयां छू पाते।
उनका देश के लिए खेलने का सपना था, जो उनकी बेटी ने पूरा किया है। इतनी कम उम्र में अपने नाम बड़े-बड़े खिताब हासिल करने का सिलसिला उस वक्त शुरू हुआ जब वह केवल 13 साल की थीं। 13 साल की उम्र में उनके पिता ने उन्हें 50 किलो चावल की बोरी को आसानी से ले जाते देखा।
जिस दिन हर्षदा गरुड़ ने 50 किलो चावल की बोरी उठाई, उस दिन उनके पिता ने उन्हें अपना सपना पूरा करने के लिए वेटलिफ्टिंग में भेज दिया।
आज हर्षदा गरुड़ ने अपने नाम कई बड़े रिकॉर्ड किए हैं, इससे उन्होंने न केवल अपने पिता का अधूरा सपना पूरा किया है, बल्कि पूरे देश का सिर गर्व से और ऊंचा कर दिया है।
फिलहाल हर्षदा गरुड़ की नजर लॉस एंजेलिस 2028 ओलंपिक पर है !
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